SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगशास्त्र [ ५. से कर्म क्षय होता है । परन्तु जहाँ योग से कर्मबन्ध होने का अर्थ किया जाय, वहाँ योग शब्द का अर्थ प्रणिधान से प्रत्यंत शुद्ध बने हुए धर्म व्यापार से नहीं है, अपितु श्रात्म- प्रदेश के आन्दोलन के स्पन्दन रूपी योग द्वारा आत्मा कार्मरण वर्गरणा को अपनी ओर आकर्षित करती है और कार्मण वर्गरण का आत्मा के साथ मिलना ही कर्मबंध है । योगशास्त्र ग्रंथ सुनने का अधिकारी कौन ? आप क्या सुनना चाहते हैं ? क्या योगशास्त्र सुनना है ? शिष्य बन कर सुनेंगे या शिष्य होकर सुनेंगे ? इस विषय पर एक उदाहरण सुनिये - तीन दिन से भूखा एक गरीब भूख से तड़फता हुआ इधर-उधर भटकता हुआ भगवान् बुद्ध के पास आता है और उन्हें देखता है । गरीब के मन में विचार श्राता है कि 'यदि मैं भगवान् बुद्ध का शिष्य बन जाऊँ तो सदा के लिये मेरी खाने-पीने की चिंता ही मिट जाय । अत्यन्त विनम्र होकर उसने भगवान् बुद्ध को नमन किया और बोला, “भगवान् ! आप मुझे अपना शिष्य बना लीजिये ।" भगवान् बुद्ध ने कहा, "वत्स ! तुझे शिष्य बनना है या शिष्य होना हैं ?" इस अटपटे प्रश्न से गरीब घबरा गया, बोला, "भगवन्! मैं कल इस विषय पर विचार कर उत्तर दूँगा ।" भगवान् बुद्ध बोले, "यदि तुझे शिष्य बनना हो तो अभी शिष्य बना लेता हूं | यदि तुझे शिष्य होना है तो कल इस विषय पर पूरा विचार कर फिर आना ।" जब गरीब जाने लगा तो भगवान् बुद्ध ने फिर कहा, "जो शिष्य बनता है, वह दूसरों को भी बना देता है ।" गरीब फिर भी कुछ नहीं समझ सका । बाद में उसे पता लगा कि शिष्य बनने की अपेक्षा शिष्य होना अच्छा है । गरीब रातभर विचार करता रहा, “मुझे तो खाने-पीने की चिंता है। भगवान् बुद्ध का सयम भी बहुत कठिन है, मैं उसका पालन नहीं कर सकूँगा ।" For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy