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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ब्रह्मचर्य [ गाँव गया । नाई की स्त्री दूकान पर बैठी थी । घोड़े को रोककर नेपोलियन ने पूछा "बहिन ! तुम्हारे यहाँ नेपोलियन बोनापार्ट नामक एक युवक पढ़ने के लिये रहता था, क्या तुम्हें कुछ याद है ? उस युवक का स्वभाव कैसा था ? " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३३ नाई की स्त्री ने झुंझला कर उत्तर दिया, "मैं ऐसे नीरस व्यक्ति की चर्चा करना नहीं चाहतो उसने कभी हंसकर बात भी नहीं की, वह तो पुस्तकों का कोडा था । " नेपोलियन खिल खिला कर हंस पड़ा, बोला, "देवी ! तुम ठीक कहती हो । यदि बानापार्ट तुम्हारी रसिकता में उलझ गया होता तो देश का प्रधान सेनापति बनकर ग्राज तुम्हारे सामने खड़ा नहीं होता ।" इन्द्रिय संयम के कारण ही वह जहाँ भी गया विजय पताका फहराई, किंतु जीवन सांध्य वेला में इन्द्रियों का गुलाम बनकर वह अन्तिम युद्ध में पराजित हुआ । तुलसीकृत रामायरण का एक मधुर प्रसंग याद आ रहा है । जब महाबली मेघनाथ युद्ध के मैदान में प्राया तब वीरों में एक तहलका मच गया । कोई भी उसे जीत नहीं सका । तब राम पूछा गया, उन्होंने कहा, "उस वीर को वही जीत सकता है जिसने १२ वर्ष तक अखंड ब्रह्मचर्य का पालन किया हो । राम की बात सुनकर इन्द्रिय विजेता लक्ष्मरण युद्ध में उतरे । ब्रह्मचर्य के महान् तेज से मेघनाथ की शक्ति क्षीण पड़ गई । वह बलि के बकरे सा चिल्लाया और उसका जीवन दीपक एक क्षरण में बुझ गया । इसी प्रकार महाभारत में चित्ररथ गन्धर्व के जीवन की कहानी याद आती है, जब अर्जुन ने चित्ररथ को जीत लिया न्ध चित्ररथ ने अर्जुन से कहा, "हे अजुन ! ब्रह्मचये ही परम धर्म है, जिस परम धर्म का तुमने साधन किया है, उस ब्रह्मचर्य के कारण ही तुम मुझे युद्ध में पराजित कर सके हो ।" For Private And Personal Use Only भारतीय धर्म और संस्कृति में साधना के अनेक विधान है, पर उन सब में सर्वश्रेष्ठ साधना ब्रह्मचर्य का तप ही है । ब्रह्मचर्य की साधना में विश्व की सभी साधनाएँ प्रा जाती है । कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरि ने चारित्र के चौथे भेद के रूप में ब्रह्मचर्य की निरूपरणा की ।
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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