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सत्य
और उससे विवाह करने को इच्छा प्रकट की । मछुए ने विवाह के लिये यह शर्त रखी कि यदि सत्यवती का पुत्र हा राजगद्दी पर बैठे तो मैं उससे आपका विवाह कर सकता हूं। गांगेय को इस बात का पता चल गया और उन्होंने सबके सामने प्रतिज्ञा की कि “मैं सहर्ष राज्य-पद छोड़ता हूँ। महारानी सत्यवती का पुत्र ही राज्याधिकारी होगा।' मछए को फिर शंका हुई कि गांगेय का पुत्र तो राज्याधिकारी हो सकता है। गांगेय ने भीष्म प्रतिज्ञा की कि मैं आजीवन ब्रह्मचारी रहूँगा। तभी से उनका नाम भीष्म हो गया । ऐसे बाल ब्रह्मचारी और सत्य के पुजारी, प्रतिज्ञा पालक भीष्म पितामह के मुखमंडल पर तेज नहीं होगा तो और किसके मुह पर होगा?
हमारा यह संसार भी बड़ा विचित्र है। जो प्रश्न हमें स्वयं अपने से पूछना चाहिये, वह हम दूसरों से पूछते हैं । जो प्रश्न दूसरे लोगों से पूछना चाहिये, वह अपने से पूछते हैं । हमें स्वयं अपने से पूछना चाहिये कि मैं कौन हूँ ? उसे हम दूसरों से पूछते हैं कि 'बताओ, मैं कौन हूँ।' इसका उत्तर हम दूसरों से चाहते हैं इसीलिये वास्तविक उत्तर नहीं मिल पाता ।
राजा सत्यवान ने अपने पापसे पूछा, 'मैं कौन हूँ ? सत्यवान हूँ।" एक समय राजा ने देशभर के चित्रकारों को एकत्रित किया और कहा, "राजमुद्रा के लिये वांग देते हुए मुर्गे का नित्र बनाना है, चित्र जीवन्त होना चाहिये । सर्वश्रेष्ठ चित्रकार को पुरस्कार दिया जायेगा। अच्छे प्रच्छे चित्रकार अपने अपने चित्र लेकर आये। राजा को कुछ पमन्द भी आये, पर इन चित्रों में सर्वश्रेष्ठ चित्र कौन सा है, इसका निणय कौन करे? परीक्षक राज्य का पुराना वृद्ध चित्रकार नियुक्त किया गया। उसने कहा, राजन् ! इनमें से एक भी चित्र जीवन्त नहीं है। मैं जीवन्त चित्र बना सकता हूँ, पर उसमें ३ वर्ष लगंगे।" राजा ने उसे चित्र बनाने की प्राज्ञा दे दी।
२ वर्ष बीतने पर राजा ने अपने सेवकों को राज्य-चित्रकार के घर भेजा यह पता लगाने के लिये कि चित्र बना ? चित्रकार घर पर नहीं था। उसको ढूढते ढूढते एक जंगल में गये वहाँ चित्रकार को एक मुर्गों के बाड़े में मुर्गा बना हुआ देखा। सभी पाश्चर्य चकित हुए। पूछा, "चित्र बन गया क्या ?" चित्रकार बोला, "नहीं, अभी एक वर्ष और लगेगा।" तीन वर्ष पूरे होने पर राजा ने चित्रकार को बुलाया और चित्र के विषय में
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