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काम पुरुषार्थ धर्म अर्थ काम और मोक्ष चार पुरुषार्थ हैं, इन में से अाज का विषय काम पुरुषार्थ है। कहा गया है कि:
'जानन् बलाबल' अपने सामर्थ्य और अपनी शक्ति का विचार कर ही कार्य करना चाहिये । मेरे शरीर में कितना बल है, मेरे पास कितना धन है, मेरे घर में और जहाँ मैं रहता हूँ उस स्थान विशेष में कितनी शक्ति है, मेरी हैसियत कंसी है ? इन सभी बातों पर विचार करके ही कोई कार्य करना चाहिये। शक्ति न हो तो जहाँ गुडे रहते हों वहाँ नहीं जाना चाहिये। यदि शक्ति की उपेक्षा करते जायेंगे तो मृत्यु को निमन्त्रण देना पड़ेगा। एक अहंकारी सेठ यह जानकर भी गुड़ों की गली में गया । गुड़ों ने घेर लिया। दस पैसे का सिक्का दो. जो जीतेगा वह पापकी हाथ घड़ी लेगा, जो हारेगा वह आपका पाकेट लेगा । चित्त भी मेरी, पट भी मेरी, उपर से दो चार धौल थप्पड़ पड़ जाँय तो अलग । अतः हम में कषाय कितना है ? स्वभाव कैसा है ? काम कितना बढ़ गया है ? प्रादि बातों का विचार करके ही कार्य करना चाहिये।
यहाँ आज काम पुरुषार्थ का विवेचन करना है । काम विज्ञान विशेषज्ञ डा. फ्रायड की मान्यता है कि काम वासना ही मन की मूल शक्ति है । वह इसको लिबिडो' कहता है । यह एक फ्रांसीसी शब्द है जिसका अर्थ है जीवन शक्ति । वास्तव में कामवासना मन की मूल शक्ति नहीं है । वातावरण के अनुसार इसका प्रादुर्भाव तिरोभाव होता है। जिनको बाल्यकाल से ही ब्रह्मचर्य पालन और सय मी वातावरण मिलता है, वे कामवासना के संस्कारों से प्रायः अछते ही रहते हैं। जैन शास्त्रों में काम भोग को घणित तथा निंद्य माना गया है। कामवासना का दमन करने के दो उपाय हैं: (१) ब्रह्मचर्य (२) हठयोग ।
योग के आचार्यों ने हमारे शरीर में छः चक्र माने हैं, उसमें से दूसरे चक्र का नाम स्वाधिष्ठान चक्र है। जब तक यह चक्र विकसित नहीं होता तब तक मनुष्य कामवासना में रस लेता है। इस चक्र को जब विशुद्ध च
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