________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भूमिका
योगशास्त्र जैसे गम्भीर विषय को जन-साधारण के हृदयों में उतारना एक बहुत ही कठिन कार्य है, फिर भी गुरुकृपा से मैंने इसे विस्तारपूर्वक समझाने का प्रयत्न किया है।
योग के अन्तर्गत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों ही पुरुषार्थों का विवेचन पाता है, जिसमें धर्म और मोक्ष मुख्य हैं, किन्तु अर्थ और काम के बिना यह संसार चल नहीं सकता, अतः इनका विवेचन भी आवश्यक हो गया है।
सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्ररूपी त्रिरत्न भी योग के अन्तर्गत ही पा जाते हैं, अतः इनका भी विस्तृत विवेचन है । पाँच महाव्रत और गृहस्थ के १२ व्रत सम्यक् चारित्र के ही अंग हैं, अतः उनका भी व्याख्यानों में क्रमशः विवेचन हुआ है ।। २ . ॐ कार का विवेचन, ध्यान के उपाय, रंगों का शरीर और मन पर प्रभाव, मन को वश में करने के उपाय, प्राणायाम की विधि, स्वस्थ शरीर के लिये योगासनों की आवश्यकता प्रादि योग सम्बन्धी संपूर्ण विषयों पर गहन विवेचन किया गया है।
गंभीर विषय को सुनते सुनते लोग ऊब न जायें, इसलिये लोगों की ऊब को मिटाने और व्याख्यानों को सरस एवं ग्रानन्ददायक बनाने के लिये जहाँ तहाँ कथाओं और कवितामों, गीतों आदि का पुट भी दिया गया है।
पाठकगण योग के गंभीर विषय में भी इस पुस्तक को पढ़ने के पश्चात् रस लेने लगेंगे और योग को अपने जीवन में उतार कर शरीर, मन और आत्मा की स्वस्थता, स्वच्छता और उत्कर्ष प्राप्त करेंगे तो मैं समझूगा कि मेरा प्रयत्न सफल हुआ।
ॐ शांति, शांति, शांति
क्रिया भवन,
पन्यास धरणेन्द्र सागर
जोधपुर
For Private And Personal Use Only