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मनह मनोरथ जे करे, 'ते पूरण असमत्थ; स्वर्ग सुरद्रुम मंजरी, त्यांहि पसारे हत्थ. फीट हियडा फूटे नहि, हजी नहि तुजने लाज; जीव जीवन विजोगडे, जीव्यानु कुष्ण काज. माणसथी माछा भला, साचा नेह सुजाण; ज्यु जन्थी होय जुजुआ, त्युं ते बंड प्राण. सहस बहे संदेशडो, लेख लहे लख मूल; अंगो अंग मेलावडो, सुरतम् फूल अमूल.
श्री सीमन्धर साहिबा. मत्रोच्चार० ग्यमासमण.
कि बहु कागळमें लिखु, लख ललच बहु लोमा मिल्यां पछी मालुम थो, चिर थापण चिरकाम. किं बहु मीठे बोलडे, जो मन नाह समनेह : जा मन नेह अछेह तो, एक जोध दो देह. किं बहु कागळमें लिम्वु, घणु घणम गुल्झ, सेवा निज पद कमळनी, देजो साहिब मुज.
श्री सीमन्धर साहिबा मंत्रोच्चार खमाममण.
क तणी परे रडवडयो, निधणीयो निरधार, श्री सीमन्धर साहिबा, तुम विण इण संसार. १
तुम विण कुण आधार. हुँ रे अनादि निगोदमां, आव्यो अव्यवहारी जीव; काळ अनंत तिहां रह्यो, भत्र अनंत मदीव. २
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