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अद्भुत जादूगर
(दोहा) जादूगर अद्भुत कोई, तू मेरी नजरमें नाथ । सारी त्रिभुवन कर लिया, कैसे अपने हाथ ।।
स्तवन
(तर्जनील गगनभे उडते बादल आ आ आ) ओ अदभुत जागर! दिलमें आ आ आ ।
ज्योतिकी ओर जीवनको ले जा जा जा ।। मन्त्र न कोई कोई न विद्या नहीं कोई कार्मण योग, झुकते तुजको फिर भी किस तरह तीन जगतके लोग, तीनो जगतमें तेरा बश गया छा ......... ज्योति. १ पशु पंछी और पेड पवन भी जब तुजको अनुकूल, करुणासागर! ओर कौन हो तव तुजको प्रतिकूल, तेरा प्रतिकूल सुख सकता कहाँ पा
ज्योति.२ बिल्ली-उंदर सिंह-गाय जैसे भी आपकी पास, बन्धुवत् भगिनीवत् बनकर बैठ जाते पास पास, दिव्य देशना सुनते वे भी दिल ला ......... ज्योति. ३ कंचन-कमल पे चरण-कमल घर करते सदैव बिहार, सारे चौदह राज ज्योतिसे भरते पांच पांच बार, नरक-जोव भी जब खुशीमें जाते आ ......... ज्योति. ४ हुआ न होगा ऐसा कहों कभी जादूगर कोइ अन्य, जादूगरी यह क्यों न सिखाएंगे हमको भी अनन्य, कैसे भी हम जिन गुण 'मणि' ले गा ......... ज्योति. ५
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