________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२२४
मेघ महीप मंगलावती सुत विजयापति, आनन्द गज लंछन जगजनता रतिः क्षमाविजय जिनराज ! अपाय निवारजो, विहरमान भगवान ! सुनजरे तारजो. ७
_श्री विशविहरमान स्तवन सीमन्धर युगमन्धर बाहु ! चोथा स्वामि सुबाहु; जंबूद्वीप विदेहे विचरे, केवळ कमला नाउरे भविका,
विहरमान जिनवंदो. आतम पाप निकंदो रे, भविका विहरमान जिनवंदो. १ सुजात स्वयंप्रभ श्री ऋषभानन अनंतवारज चित्त वरीये; सुरप्रभ श्री विशाल वज्रधर चंद्रानन घातकीये रे भविका
विहरमान जिन० २ चंद्रबाह भुजंग ने ईश्वर, नेमिनाथ वीरसेनः देवजसा चंद्रजसा जितवीर्य पुक्खरद्वीप प्रसन्न रे भविका
विहरमान जन० ३ आठमी नमो चोविश पचविशमी, विदेह विजय जयवंता; दशलाख केवळी सो क्रोड साधु, परिवारे गहगहंता रे भविका
विहरमान जिन० ४ धनुष पांचसे ऊंची सोहे, सोवन वरणी काय; दोष रहित सुर मही महीतल, विचरे पावन पाया रे भविका
विहरमान जिन० ५ चोराशी लाख पूरव जिन जीवित, चोत्रिश अतिशय वारी; समवसरण बेठा परमेसर, पठिबोहे नरनारी रे भविका;
विहरमान जिन० ६ खिमाविजय जिन करुणासागर, आप तया पर तारे; धर्मनायक शिव मारग दायक, जन्म जरा दुःख वारे रे भविका
विहरमान जिन० ७.
For Private And Personal Use Only