SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२१ काम दहे कामित भरे, धरे योग अयोगी थाय लाल रे; करे क्रिया अक्रिय वरे, अक्षर पण लिपि वडे न लखाय लाल रे अकल. ४ गज लंछन दुःख भंजनो, श्री युगमन्धर नाह लाल रे; क्षमाविजय जिन सेवना, शिव सुंदरी विवाह लाल रे. अकल० ५ (२) काया पामी अति कूडी, पांख नहीं आq उडी, लब्धि नहीं कोई रूडी रे, श्री युगमन्धरने कहेजो के, दधिसुत विनतडी सुणजो रे श्री० युग १ तुम सेवा मांहे सुर कोडी, ते ईहां आवे एक दोडी; आश फले पातिक मोडी रे श्री युग० २ दुषम समयमा एणे भरते, अतिशय नाणी नवि वरते; कहीये कहो कोण सांभलते र; श्री युग ३ श्रवणे सुखीया तुम नामे, नयणां दरिसण नवि पामे ए तो झगडाने ठामे रे. श्री युग ४ चार आंगल अंतर रहेवु, शोकलडीनी परे दुःख सहेवु; । प्रभु बिना कोण आगळ कहेवु रे. श्री युग० ५. म्होटा मेळ करी आपे, बेहुने तोल करी थापे; सज्जन जस जगमां व्यापे रे. श्री युग० ६ बेहुनो अंक मतो थावे, केवळनाण युगल पावे; तो सवि वात बनी आवे रे. श्री युग० ७ गजलंछन गजगति गामी, विचरे वप्रविजयस्वामी; नयरी विजया गुण धामी रे. श्री युग० ८ मात सुताराए जायो, सुदृढ नरपति कुल आयो; पंडित जिनविजये गायो रे. श्री युग० ९. For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy