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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१७ स्वरूपथी दीसे सावध, अनुबंधे पूजा निर्वद्य: जे कारण जिनगुण बहुमान, जे अवसरे वरते शुभ ध्यान ९० जिनवर पूजा देखो करो, भावयग भावे भवजल तरी; छकायना रक्षक हो वली, एह भाव जाणे केवली. ९१ जल तरतां जल उपर यथा, मुनिने दया न होए वृथा; पुष्पादिक उपर तिम जाण पुष्पादिक पूजाने ठाण. ९२ तो मुनिने नहि किम पूजना, एम तुशुचिते शुभ मना, रोगीने औषध एह सण, निरोगी छे मुनिवर देह. ا سه टाक ९ (मुण सीमन्धर साहिबाजी ओ देशी) भावस्तव मुनिने भलोजी, बेउ भेदे गृही धार; त्रीजे अध्ययने कह्योजी, भहानिशीथ मझार. सुणो जिन तुज विण कवण आधार-ए आंकणी ९४ वळी तिहां फल दाखियुजी, द्रव्यस्तवन रे सार; स्वर्ग बारमु गेहिनेजी, एम दानादिक चार. सुणो० ९५ छठे अंगे द्रौपदीजी, जिन प्रतिमा पूजेय; सूरियाभपरे भावथीजी, एम जिनवर कहेय. सुणो० ९६ नारद आव्ये नवि थईजी ऊभी तेह सुजाण; ते कारण ते श्राविकाजी, भाखे आळ अजाण. सुणो० ९७ जिनप्रतिमा आगळ कहयोजी, शकस्तव तेणे नार; जाणे कुण विण श्राविकाजी, एह विध हृदयविचार. सुणो० ९८ पूजे जिन प्रतिमा प्रोतेजी, सूरियाभ सुरराय; वांची पुस्तक रत्ननांजी, लेई धर्म व्यवसाय. सुणो० ९९ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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