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अचिन्त्यचिन्तामणिकल्पभूत अनन्तानन्त परम-उपकारक, परमतारक, परमकारुणिक, परमसुश्रद्धेय, परमसुगृहीतनामधेय, परम सुभगभागवेय, त्रिकालाबाधिताविच्छिन्नानम्तान्त परमप्रभावशाळी, सकलसमी ह्तपुरक देवाधिदेव श्री सोमन्धरस्वामिजी परमात्माना मंत्रनो १००००० (एक लाख) जाप परमोल्लासितभावे पूर्ण करनारनी भवस्थितिनो निर्णय थाय अथवा महाविदेहक्षेत्रमा जन्म पामी आठमा वर्षे चारित्र अंगीकार करीने नवमा वर्षे केवळज्ञानी बनी शके.
परम पूज्यपाद आचार्यश्री लक्ष्मी पूरीश्वरजीमहाराज अनन्तो. नन्त पस्मतारकोना चैत्यवन्दनमः ए ज वातनो निर्देश करे छे के
आ भरते पण आई जीव, सुलभबोधि जेहः जाप जपे तुज नाभनो, लाख संख्याए तेह. भवस्थिति निर्णय तस हुआ, अथवा ध्यान पसाहे; उपजी विदेह केवळ लहे, नवमें घरस उत्साहे.
अनन्तानन्त परमतारकरीना अनन्तप्रभावे प्रतिबोध पामी देवाधिदेवना तारक सुहस्ते दीक्षित बनेल ८४ गणधर महाराजओ, दशलाख केवळज्ञानि-महाराजाओ अने सो सो कोड पूज्य साध. साधीजी महाराजाओना अति वराट परिवारे विचरी महाविदेहक्षेत्रनी मामिने पावन करी, विश्व उपर अनन्त उपकारने। पुष्करावर्त महामेघ निरन्तर वर्षावी रह्या छे. श्रावक श्राविकानी तो कोई सीमा ज नथी अयो अचिन्त्य अनन्तपरमप्रभाव छे देवाधिदेवनो.
दशलास्त्र केवळी जेहने, सो कोडी मुनिस्वामी; साधवी सो कोडी का, श्रावक संख्या न पाभी
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