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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६३ मन मंदिर छे प्रभु माहरु, तारे वसवाने लाग रे; तु दीनदयाल दयाकरू, वडभागी तु निराग रे; मन० ३ निज आशय धरती शुद्ध करी, मिथ्यामत काढ्यो साल रे; तिम माया कंटक काढीया, शुभ रुचिधर बंध विशाळ रे. मन० ४ काढ्यो कचरो दुर्ध्याननो, तामस रज कीधो दूर रे; शुभ ध्यानशुलींपण लीपीओ, छांट यो शमरस शुभनीररे. मन० ५ तिहां समकित थंभ ऊभाविया, अप्रतमपणानी भीति रे; कडीबंध कपट रहितपणुं, क्रिया छेह पुण्य प्रकृतिनी भोतिरे. मन० ६ सुविवेक चंदननो ओरडो, तिहां संतोष सिंहासन साररे; निहां धूप घटो प्रगटी घणु, जिनशासन श्रद्धा धार रे मन० ७ चन्द्रोदय चारित्र चिहुं दिशि, संयम गुण मोती माल रे शुभ ज्ञानदीपक दीपे भला, तोरण बहु विनय रसोळ रे. मन० ८ करुणाजल पग धोवण भणी, पुष्पांजलि समता जाण रे तुम गुणथुति सुदर सुखडी. आगमनय वयग प्रमाण रे मन० ९ भलु भोजन भैत्रीभाव जे, तिहां सत्यवचन तंबोळ रे, तिहां वाजा समकित गुणतणा, शुभ किरिया केसर घोळ रे, मन०१० अम भगति युगति करशे घणी, मुज मनुमानिनी मनोहार रे; मुज अंगज विनय सोहामणो, धरशे शिरछत्र उदार रे. मन०११ प्रभु महेर करी मन मंदिरे, सीमंधरजिन पाउधार रे; मुज भाव भगति देखी घणु, जई शकशो केम किरतार रे. मन०१२ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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