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(७३) श्री सीमंधर स्वामिजी जीवन जगदाधार: वहाला सुणो एक विनति, मारा प्राणना आधार;
प्रभुजी ! मानजो महाराज ! १ हियडूं तो मुज हेजालु रे, श्वास भर्यो उभराय; एक पलक धीरज नवि धरु, कहुं कुण आगळ जाय. प्रभुजी० २ खिण खिण मनोरथ नवनवा, उपजे मनडा माही' फरि तेह मनमां वीसमें, कांइ जिम कूवानी छांहि प्रभुजी० ३ एक घडी अथवा अधघडी, जो प्रभु मिले एकांति; तो वात सवि मननी करु, भांजु तो सघळी भ्रांति प्रभुजी० ४ भले सरज्यां ते पंखियां, मन चिंते तिहां जाई; माणस न सरजी पांखडी, तिणे रहि मन अकुलाई. प्रभुजी० ५ कुण मित्र जग एहवो मिले, जे लहे मननी वात; वेधे नहि मन जेहसं, किम मिले तेहसुं धात; प्रभुजी०६ नवनव रंगा जीवडां, अति विषम पंचम काल; आप आपणा मन रंगमां, सहु को थई रह्या लाल. प्रभुजी. ७ कहुं कुण आगळ वातडी, कुण सांभळे वली तेह; टाले कुण प्रभु तुम विना, मनडा तणा संदेह. प्रभुजी० ८ संसार सचळो जोवतां, मुज मन राचे न कयाय जम कमल बननो भमरलो, तेने अवर न गमे कांई. प्रभुजी० ९
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