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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साहिब दुःख अनन्तां में सह्यां रे, हुँ भमियो, गमियो छु भव आळ रे; शरणे राखजो निज सेवका रे, तुम विण कोई न दीनदयाळ रे. ३ इतरा दिवस लगे भूले थके रे, सेव्या तो होशे सुर केई एक रे; ते अपराध खमजो माहरो रे, मोटा तो बक्षे खून अनेक रे. ४ हवे एकताळी कीधी एहवी रे, तुम विण अवर न नमवा संस रे; सुर तरु फळ छोडी तूसने रे, खावानी केम आवे हूंस रे. ५ हियडे तो नेह घणो हेजाळवो रे, जावे आवे करवा प्रीत रे; सम विषम पण न गणे वातडी रे, नवल सनेही नवली रीत रे. ६ मनडो चंचळ मुज तानु आळसी रे, कर्म कठिन सबळा अन्तराय रे; पाप किया कोई भव पाछला रे, मनमेलु केम भेळो थाय रे. ७ वालेसर सांभळे मुज विनति रे, मारे तो तुहि ज साजन स्त्रैण रे; हियडा भीतर तु वासे वसे रे, ध्यान धरूं समरु दिन रौण रे. ८ कोई केहने मनमा वसे रे. कोई केहने जीवन प्राण; मारे तो तुम विण को नहीं रे, जिनजी ! भावे जाण म जाण रे. ९ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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