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साहिब दुःख अनन्तां में सह्यां रे,
हुँ भमियो, गमियो छु भव आळ रे; शरणे राखजो निज सेवका रे,
तुम विण कोई न दीनदयाळ रे. ३ इतरा दिवस लगे भूले थके रे,
सेव्या तो होशे सुर केई एक रे; ते अपराध खमजो माहरो रे,
मोटा तो बक्षे खून अनेक रे. ४ हवे एकताळी कीधी एहवी रे,
तुम विण अवर न नमवा संस रे; सुर तरु फळ छोडी तूसने रे,
खावानी केम आवे हूंस रे. ५ हियडे तो नेह घणो हेजाळवो रे,
जावे आवे करवा प्रीत रे; सम विषम पण न गणे वातडी रे,
नवल सनेही नवली रीत रे. ६ मनडो चंचळ मुज तानु आळसी रे,
कर्म कठिन सबळा अन्तराय रे; पाप किया कोई भव पाछला रे,
मनमेलु केम भेळो थाय रे. ७ वालेसर सांभळे मुज विनति रे,
मारे तो तुहि ज साजन स्त्रैण रे; हियडा भीतर तु वासे वसे रे,
ध्यान धरूं समरु दिन रौण रे. ८ कोई केहने मनमा वसे रे.
कोई केहने जीवन प्राण; मारे तो तुम विण को नहीं रे,
जिनजी ! भावे जाण म जाण रे. ९
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