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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५७ (७१) जिनवर मुजने कोई मिलावो, सीमंधर शिवनामी रे; चरण कमळ तारा व हुं, तु छे मारो स्वामि रे. जिन० १ सासरडानु' कोड घणेरु, पियरडे नवि रहिये रे: चउगई मांही दुःख घणेरू, मुक्ति सासरडे जईए रे. जिन० २ मृत्यु लोकमां रे पियर मोटु, माया जंजाळे खोटुं रे; स्वर्ग मोसाळे क्यारेक जावु, भातुं पोतानुं खावुं रे. जिन० ३ पाताळमांही घणां कुटुंबी, राढ वेढ दुःख खाणी रे; छेदाणो भेदाणो बहु परे, सुखि नवि पाम्यो प्राणी रेजिन० ४ लाख चोराशी योनि नगरमां, पेसी निसरीयो एकाकी रे; कोडी अनन्तमे भोगे वहेंचाणो, आठ खाण रह्यो थाकी रे. जिन० ५. अंडज पोतज जर रस जात, प्रस्वेद जात समूच्छिम रे उद्भिज्ज भूमिमांही उत्पात रोप्या, आठ खाणी भयो तिम रे. जिन० ६ काळ अनंता फरी फरी आव्यो, सद्गुरु आव्यो आरो रे; मुक्ति सासरडो एहज मारो, आपणो आतम तारो रे. जिन० ७ केहना समां ने केहनी सगाई, वैरी थाये बहेनभाई रे, पांचेय इंद्रिय चोर अन्यायी, परभवे सही दुःखदाई रे. जिन० ८ For Private And Personal Use Only मात पितानुं कांई न चाले, बहेन भाई सौ भोळा रे, पुत्र कलत्र सहु पाप करावे, खावा मळे सहु टोळा रे. जिन० ९
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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