SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६९) ( ढाळ : वोर वखाणी राणी चेलणाजी ) स्वामी सीमंधर मारे मन वस्याजी, सुंदर सुगुण सुजाण; अंतरजामी अंतर लहेजी, त्रिभुवन भासतो भाण. स्वामि० १ कनक सतेज कसवट कस्योजी, तेहत्रो वर्ण शरीर; जीवतां पाप भवभव तणांजी, जाय जिम थल थकी नीर. स्वा० २ धन्य ते नयण चकोरडाजी, पेखे प्रभु मुख चंद; जन्म सफळ निज कीजियेजी, रोपीये पुण्य तरुकंद. स्वा० ३ स्वामिगुण वागुरा विस्तरीजी भविक मनमृग पडे पास जन्म मरण तथा पाशथीजी, निसरे ताहरा दास स्वा० ४ समवसरण मध्ये बेसीनेजी मालवकौशिक राग; देशना मधुर स्वरे उपदिशेजी, जे सुणे तेहना भाग. स्वा० ५. दुःख लहुं चार गतिमां भमुंजी, सेवतो काज अकाज; जो जो हृदय विचारीनेजी, ते प्रभु ! कहेजो लाज. स्वा० ६ साहिव लोभ न कीयो तदाजी, सहु भणी आपतां दान; नाथ अनाथ तुम्हारे नथीजी, हो मुज निर्मळ ज्ञान. स्वा० कारमा सुख तणे कारणेजी, राची रह्यो मन मूढ; तारी भगति नवि आदरीजी, पडचा अज्ञानथी रूढ स्वा० ८ पंचम काळे इण भरतमांजी, नव मिले केवली कोई, स्वामि ! तुम्हे पण वेगळाजी, किम मन धीरज होई. स्वा० ९ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy