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(४८)
चित्तडु संदेशो मोकले, म्हारा बहालाजी रे, मना साथै रे नेह, जईने कहेजो म्हारा स्वामिजी रे; सीमंधर नित्य हुं जपुं, म्हारा बहालाजी रे.
जेम बपैयो रे मेह, जईने कहेजो म्हारा स्वामिजी रे. १ दूर देशांतर जई रह्या,
माया लगाडीने हेव, जईने कड़ेजो म्हारा ०
खे, जईने कहेजो म्हारा० २
प्रीत तो अधिकी होई गईं, म० हम छोडी जाय; जईने कहेजो म्हारा०
म०
पांखडी जो मारे होवे म्हारा
कवित ए
उत्तम जनशुं प्रीतडी,
कदीय न ओछी थाय, जईने कहेजो म्हारा ० ३ निःस्नेही तुम सरिखा, म०
में तो कोई न दीठ, जईने कहेजो म्हारा० हइडामां चाहे नहि
मोढे बोले मीठ, जईने कहेजो म्हारा० ४ आशा तो तुम उपरे म०
मेरु समान में कीथ, जईने कद्देजो म्हारा० जो क्षण एक कृपा करो,
म०
तो सहु होवे रे सिद्ध, जईने कहेजो म्हारा० ५ जे अक्षय सुख शाश्वतनुं, म०
जे सहु चाहे रे लोक, जईने कहेजो म्हारा० जो नहि आपो माग्यु थकुं, म०
फोक, जईने कहेजो म्हारा • ६
म०
म०
घं शुं कहिओ जाणने म०
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देजो स्वामी रे सेव, जईने कद्देजो म्हारा० रूप पसायथी, 可
ऋद्धि कहे नित्यमेव, जईने कहेजो म्हारा • ७