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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१८) (राग : केदारो) (साहिब सांभळो रे संभव अरज अमारी) श्री सीमंधरु रे, मारा प्राण तणो आधार, जिनवर जयकरु रे, जेहना झाझा छे उपगार. क्षण क्षण सांभरे रे, एक श्वास मांहि सो वार, किमहि न विसरे रे, जे वस्या छे हृदय मोझार. श्री सी० १ हुँसी हियडले रे, जिम होय मुकताफळनो हार, ते तो जाणोये रे, ए सवि बाहिरनो शणगार, प्रभु तो अभ्यंतरे रे, अळगो न रहे लगार, अहोनिश वंदना रे, करीए छीए ते अवधार. श्री सी० २ नयन मेलावडे रे, निरखी सेवकने संभार, तो हुलेखवु रे, मारो सफळ सफळ अवतार; नहि कोइ तेहवो रे, विद्या लब्धिनो उपाय, आवीने मळु रे, चरण ग्रहुं हु वळी धाय. श्री सी० ३ मळवू दोहिलं रे, तेह शुनेह तणो जे लाग, करतां सोहिलु रे, पण पछी विरहनो विभाग; चन्द्र चकोरने रे के चकबा दिनकर ने होय जेम, दूर रह्या थकां रे, पण तस वधतो छ प्रेम. श्री सी० ४ पण तिहां एक छे रे, कारण नजरनो सम्बन्ध, विरहे ते नहीं रे, ए मोटा छ रे धंध: पण एक आशरो रे, सुगुण शुजे रे एकतान; तेहथो वाधशे रे, ज्ञानविमळ गुणनो जसमान. श्री सी० ५ Co For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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