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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वृषभलंछनधारी श्रीयुत् सीमंधरस्वामिजो भरतवासीओनां मात्र वंदनीय ज छे अम नहीं, दूरथी दूर रह्या होवा छतां अनंतानत उपकारी पण छो केम के श्री रायपसेणी, श्री औपपातिक, श्रीज्ञातांधर्मक्था तेम ज श्री उपासकदशांग इत्यादि कैक आगमोनी वाणी प्रमाणे अनेकानेक भव्य आत्माओ के जेमणे जन्मग्रहण तेमज अद्वितीय आराधना भरतक्षेत्रमा करी छे छतां तेओ मुक्तिपुरीनी भहेमानगोरी तो मे महादिदेहना वासी श्री सीमन्धर साहेबान। चरणकमळमां साक्षात् भ्रमर बन्या पछी ज पाम्या या पामवाना छे. आवा अनंतानत उपकारी उक्त अप्राप्त प्रभुने प्राप्त करवाना कोड कोने न जागे ! पण अमने प्राप्त करवानी कोरी वातोथी तो वखत जाय. कांई अंतरनी इच्छा पूरी न ज थाय. तो पछी अतरनी इच्छा पूरी थाय शी रीते ? अना माटे तो उत्कट साधना अने आराधना जोईओ, अनन्य भक्ति जोईए. अनन्य भक्ति करतां शक्ति-अशक्तिनी वातो वेगथी छोडी देवी जोइए. अनन्य भक्ति केरो विधि श्री लक्ष्मीसूरीश्वरजी महाराजे श्री सीमंधर स्वामीना चैत्यवंदनमा जणाव्यो छे (जे आ ज पुस्तकमां अन्यत्र आपेल छे) जरूर पड़े तो अनाथी पण आगळ बेघडकपणे वधवु जोईए, शु आपणने कोईने पण ओवी झंखना जागती नथी के एक वार पण मे देवाधिदेव परमतारक परमात्मा भावजिनेश्वरने प्रत्यक्ष रूपमा भेटीओ नहि के परोक्ष रूपे. श्री सीमन्धरस्वामी भगवंतने प्रगटपणे भेटवाना कामने आपणे बधा जेटलु कपलं मानीए छीमे तेटलु ते नथी ए एक नकर सत्य हकीकत छे. अथवा तो तेटलु कपर होय तोय भले पण तो पछी ते बधाना माटे नहि, परंतु प्रमादग्रस्त, विलासग्रस्त भयग्रस्त, निःसत्त्वताग्रस्त जीवोने माटे छे. जेमनामां सावधानी, विलासितानो अभाव, सात्त्विकतानो For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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