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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org राज्य राज्यैरिव विष- युतै- नोर्थना विश्वनेत, भोगेरोगैरिव मम - सृतं सर्वदोषापनेतः, दिष्टया दृष्टया तव परपदाम्भोज - युग्मं कृतार्थः, प्रेक्ष्य प्रेक्ष्य क्षपित दुरितः स्यां नु लब्धार्थ - सार्थः ॥ १४ ॥ एवं निर्भर - भक्ति - सम्भृत-हृदा नोऽति क्रिया-कर्मता, नीतः स्फीततम - प्रभाव-भवनं त्वं नाथ सीमन्धर ! तद्वत्- तन्मय -देव ! सुन्दरतरं कुर्याः प्रसाद यथा, भूयांस भवदुक्त-शासनवराऽऽ सेवा - विश्वौ सोद्य ॥२५॥ श्री तपागच्छाधिराज श्री मुनिसुन्दरसूरिविरचितम् श्री सीमन्धरस्वामि स्तोत्रम् जय- श्रिया मोहरिपोरवाप्त त्रिलोकसाम्राज्य - रमाभिरामं । विदेह - भूमण्डल- मण्डनं श्री - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सीमन्धरं स्वामिनमानुवामि ॥१॥ सृजन्ति यं दिव्य दृशः सुयोगिन - स्तव स्तवं ते विध्ये जडोऽप्यहम् । पिबेद् गजो वारि सरस्यजोऽपि वा स्वतुन्दिपुर समता फले पुनः ॥ २॥ प्रभो ! स्फुरन्ति - कल्याण - समृद्धयः पराः ॥३॥ भवन्ति ये सिद्ध - रसास्तव - स्तवैरिवौषधै-वित - धातवः तेषां सदा शीलित-योग-सम्पदा For Private And Personal Use Only ८७
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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