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कविण कहे एक जीभथें, किम गुणवर्णन जाय; सागरमें पाणी घणो, गागरमें ( न ?) समाय. वळी कोइ भवि पुछस्ये, कवण ज्ञाति कुण जाति; मातपिता कहां एहनां, ते संभळावो भाति. देश किहां किहा जन्मभू, कुंण गुरुना ए शिष्य; कुण श्री पूज्यवारे हुवा, भलीउलटे लीधि दीक्ष. ५ विद्याविशारद किहां थया, किम सरस्वती प्रसन्न; किहां साधना कीधी भली, सुणतां चित्त प्रसन्न ६ देवचंद्रना वचनथी, किम खरचाणो द्रव्य; किम भूपति पाये नम्या. ते विरतंत कहु भव्य ७ सर्वगुण गणनी वारता, भाषे कवियण जेह; सांभळजो भविजन तुमे, पावन थाये देह.
देशी हमीरानी.
थाली आकारे थिर भलो, जंबुद्वीप विदीत विवेकी; तेहमें भरतक्षेत्रे रम्यता, आरज देश सुप्रतीत.
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भवियण भाव धरी सुणो. वि०
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मरुस्थल देश तिहां सुंदरु, तेहमें विकानेर द्वंग,
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