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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org साधुपद सझाय. १०५९ पछे प्रथम समय सो तो आदि छे, सिद्धां पुहचणारी आदि छे. अनंतेकाले उठेहीज रहणो तिगसुं अनंत छे, तेथी सादि अनंत भांगो सिद्धमां के इतिश्रेयः ॥ १२ ॥ निःस्पृह निर्भय निर्मज निर्मलारे, करता निज साम्राज | देवचंद आणायें विचरतारे, नमिये ते मुनिराज ॥ सा० ॥ १३ ॥ इति आगली गाथारो संबंध जोरावरी मिलावणो पडे छे, सिझाय कर्त्ता महा मोटा तेथी विरुद्ध कहिवाय नही. प्रथम गाथानो ते संबंध अंतिम ए संबंध ते पोतेही विचारी लेज्यो, निस्पृहवांछा रहित इसा ते मुनिराज छे, निर्भय इहलोक परलोकादि भय तेणें कर रहित इसा ते मुनिराज छे, निर्मल गयोछे कर्ममल जे हुंती इसा थका करता निज साम्राज स्वरूप संबंधी निज राज्य - आपणो राज्य कर रह्या छे देवचंद्र आणाये विचतारे || देवेषुचद्रइव चंद्रोदेवचद्र संसार संबंधी देवता विषे चंद्रमारी परे कर्मरहितपणामाटे उज्वल महाइस्या ते वीतराग देव तीगांरी आणा आज्ञा ते विषे विचरता - प्रवर्तता नमिये ते मुनिराज इसा ते मुनिराजने नमि यें, ए दोय अंतिम पदारों प्रथम पक्ष संबंधित अर्थ छे. हिवे द्वितीय पक्ष संबंधित होय अंतिम पदारों अर्थ लिखीये छे, देवचंद्र कविराज एहवं कहे- जिनेश्वरनी आज्ञा समय प्रमाणे प्रवर्त्तता एहवा जे मुनिराज तेनें नमस्कार करीये वारंवार इति संटकः ॥ इति ज्ञानसारजी कृत स्वाध्याय बालावबोध संपूर्णम् ॥ २१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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