SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 610
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री समकितनी सइझाय. १०३१ namara ॥श्री समकितनी सझ्झाय ॥ समकित नवि लघुरे, ए तो रुल्यो चतुर्गति मांहे; बस थावस्की करुणा कीनी, जीव न एक विराध्यो। तीन काळ सामायिक करतां, शुद्ध उपयोग न. साध्यो. स. १ जूठ बोलवाको व्रत लीनो, चोरीको पण त्यागी; व्यवहारादिक महा निपुण भयो, पण अंतरदृष्टि न जागी. स. २ ऊर्व बादु करी उँधो लटके, भस्म लगा धूम घटके, जटा जूट शिर मुंडे जूठो, विण श्रद्धा भव भटके. स० ३ निज परनारी त्याग ज करके, ब्रह्मचारी व्रत लीनो; स्वर्गादिक याको फळ पामी, निज कारज नवि सिव्यो. स. ४ बाह्य क्रिया सब त्याग परिग्रह, द्रव्य लिंग धर लीनो; देवचंद्र कहे या विध तो हम, बहुत वार कर लीनो. स. ५ ॥ गजसुकुमाल मुनीश्वर सझ्झाय ॥ ॥ढाल १ ली॥ आस फळी मेरी आस फळी॥ए देशी। द्वारिकानगरी ऋद्धि समृद्धि, कृष्णनरेश्वर भुवन प्रसिद्ध चेतन सांभळो. ( ए टेक) वसुदेव देवकी अंग सुजात, गजसुकुमाल कुमर विख्यात. चे० १ नयरी परिसरे श्रीजिनराय, समवसर्या निरमम निर्माया । यादवकुल अवतंस मुणिंद, नेमिनाथ केवल गुण वृंद. चे० २ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy