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१००८ अष्ट प्रवचन मातानी सइझाया.
थिविर कल्पनो प्रति अपवाद छेरे, ग्लानादिक नहि काम ॥ मु० ॥ ९ ॥ एह द्रव्यथी भावमारे, बाधक जे परिणाम। द्वेष निवारी मादकता विनारे, सर्व विभाव विराम ॥ मु० ॥१०॥ आतम परिणति तत्त्वमयी करेरे, परिहरता परभाव ॥ द्रव्य समिति पिण भावभणी धरेरे, मुनिनो एह स्वभाव ॥ मु० ॥ ११ ॥ पंच समिति समता परिणामथीरे, क्षमा कोष गत रोष। भावन पावन संयम साधतारे, करता गुण गण पोष ॥ मु० ॥ १२ साध्यरसी निज तत्त्वे तन्मयीरे, उछरंगी निरमाय । योग क्रिया फल भाव अवंचतारे, . शुचि अनुभव सुख दाय ॥ मु० ॥ १३॥ आणायुत नाणी दर्शनीरे, निश्चय निग्रह वंत ।
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