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वीरजिनवरनिर्वाण.
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आतम तत्त्व ध्यान एकता, साचो शिवसुख दावो, ईश्वर भक्ति तेहनो कारण, आगममांहि कहावो रे; जि० ॥२॥ प्रमु गुण ध्यान स्वजाति रमणे, निर्मल परणति थावो रे, तेहथी सिद्धतणे प्रभु सेवन, आतमशक्ति वधावो रे; जि०॥३॥ सुविहित खरतरगछ परंपर गजसार उवझायो, तास शिष्य पाठक सम दमधर ज्ञानधरम सुखदायो रे; जि०॥४॥ दीपचंद पाठक उपगारी सासन राग सवायो, तास शिष्य सुचि भक्ति, प्रसंगे देवचंद्र जिन गायो रे; जि०॥५॥ भावनगर श्रीऋषभप्रसादे दीवालि दिन ध्यायो, संघ सकल श्रुत शासन रागी परम प्रमोद उपायो रे जि०॥६॥ साशन नायक वीर जिनेसर गुण गातां जयमालो, देवचंद्र प्रभु सेवन करतां मंगलमाल विसालो रे. जिन ॥७॥
इतिश्री वीरजिनवर निर्वाण समाप्तम् ॥ श्रीशुभंभवतुं ॥ श्रीकल्याणमस्तु ॥
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