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वीरजिनवरनिर्वाण.
श्री हरिभद्र मलयगिरि पंडित हेमसूरी मल्हार रे, चंदमहत्तरसूरि जिनेश्वर जिन वल्लभ सुखकार रे धन० ।। ७ ।। श्री देविंद्र हेम आचारिज कुमारपालज सुभक्ति रे, श्री खेमेंद्र प्रमुख श्रुतरसिया दूसम काले व्यक्त रे धन ॥८॥ दूपसहमूरि छल्ला गणधर आराधक जिन आण रे, चोविस संघ शुधश्रद्धाधर, पंचांगी परमाण रे धन० ॥९॥ द्रव्यछक नव तचनी श्रद्धा, ज्ञानक्रिया शिवसार रे, उत्सर्गने अपवाद साधना, निश्चयनयव्यवहार रे. धन० ॥१०॥ निमित्त वली उपादान ने कारण, योग साधन तीन प्रकार रे, प्रवृत्ति विकल्प तथा परणति, शुचिकरता भव निस्तार रे.धन०११॥ पुष्ट निमित्त सेवनथी आतम, परणति थाई शुधरे, तत्त्वालंबि तत्त्व प्रगटता, साधे पूर्ण समृद्ध रे. धन० ॥१२॥ देवचंद्र श्रीवीर चरणयुग, सेवो भक्ति अखंड रे, सासन संगी आणा रंगी, ते थाइ गतदंड रे. धन० ॥१३॥
॥ ढाल ॥ कुमत इंम सकल दूरे करि ॥ ए देशी ।। भगति इंम चित्त साची धरी धरइ सासन रीत रे, वारीई दुष्ट दुरवासना वंसीई भवतणी मिती रे. भग० १॥ वीर जिनराज सम प्रभु लहि गहगहि बुद्धि गुणग्राम रे, कोण पर देवने आदरे, कल्पतरू सम प्रमु पामि रे. भग० २॥ एक आधार छे ताहरो माहरे दिनदयालरे, सार कीजे हवे दासनि नाथ जगजीव प्रतिपालरे. भग० ॥३॥ विनती दासनी धारीई तारिई कर उपगार रे, दोष अनादि निवारिई आपि इम अनुभव सार रे. भग०॥४॥
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