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वीरजिनवरनिर्वाण.
हवे कुंण संशय भेटसेजी केरये सूक्ष्म भाव, कोंने वांदिश भगतिस्युंजी करस्युं विनय स्वभाव नाथ० ९॥ वीर विना केम थायस्येजी मुने आतमसिद्धि, वीर आधारे एतल जी पाम्या पूरण समृद्धि, नाथ० १० ।। इंम चिंतवतां उपन्योजी वस्तु धर्म उपयोग, करता सङ निज कार्यनाजी प्रभु नैमित्तिक योग, नाथ०११॥ ध्यानालंबन नाथनोजी, ते तो सदा अभंग, तिण प्रमु गुणने जोइवेजी, जोइतुं आतम अंग, नाथ०१२॥
आतम भासन रमणयीजी भेदे ज्ञान पृथक्त्व, तेह अभेदे प्रणम्योजी पाम्यो तत्त्व एकत्व नाथ० १३ ॥ ध्यान लीन गौतम प्रभुजी, क्षपक श्रेणि आरोहि, घन घाति सविचूरियांजी, कीधो आत्म अमोह नाथ०१४॥ लोकालोकनी अस्तिताजि, सर्वस्व पर परजाय, तिन कालना जांणियाजी, केवल ज्ञान पसाय नाथ० १५ ॥ प्रभु प्रभु करतां प्रभु थयाजी श्री गौतम गणराय ततक्षिणइंद्रादिक भणीजी, एह वधाई थाय नाथ० १६॥ संघ सकल हरखित थयोजी, जाणि गौतम ज्ञान, कारण तूट पडि नहीजी, एह पुण्य अमान नाथ० १७ ॥ सुरपति नरपति जन सहूजी चाविह संघ महंत, आव्या गौतम पदकजेजी जय जय शब्द कहंत नाथ० १८॥ करि उछव पद थापियाजी जगगुरु पाटेत्यार, इंद्रादिक वंदन करीजी, बेठा सभा मझार नाथ १९ ॥ तिन भुवन हरखीत थयाजी, वीर पटोधर देखी, हरखें गुण गावे घणाजी, चौविह संघ विशेष नाथ० २०॥
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