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वीरजिनवरनिवौण.
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हुँ सोहम पति विनवुरेहां दया करो मुज देव; मेरा० सदा हरि दासनीरेहां मानो विनति सेव. मेरा० ॥१३॥ नित्य मनोरथ नव नवारेहां करता भु अवलंब मेरा० ते दिशी दारव्यो सर्वने रेहां प्रभुजी ज्ञान कदंब मेरा० ॥१४॥ एह श्रमण श्रमणी भणीरेहां निज आराधक भाव मेरा० केहने पूछी आलोयर येरेहां अंतर गत परभाव मेरा० ॥१५॥ भव्य अभव्य निरधारतारेहां पूछीशु कुग पास मेरा० आश्रव पीडित जीवनीरेहां कुण सुणसें अरदास मेरा० ॥१६॥ ते सवि मनमा रहिरेहां चाल्यो तारक सिद्धि मेरा० .. आणा आलंबन करिरेहां करवी कार्य समृद्धि मेरा० ॥१०॥ सोपण एहना नामथीरेहां राखो मोटी आश मेरा० देवचंदनी सेवनारेहां शिव सुख कारण खास मेरा० ॥१८॥
॥दोहा॥ इंम दुःख भरि इंद्रादिके विमन चित्त मुखदिन कलश विधे नवरःविया चित्त भक्ति लयलीन ॥१॥ कार विलेपन अति सुरमि बहुविध फूलनी माल आभरणादिक अलंकन्या श्री जिन जगत दयाल ॥२॥ संहस्त्र थंभ शिबिका रचि छत्रत्रय अभिराम सिंहासनपाद पीठ विधि चामर भज अभिराम ॥३॥ प्रभु बेसान्या पालखी उपाडे सुरवृंद वैमानिक भुवनाधिपति व्यंतर सूरजचंद ॥ ४ ॥ चामर विजे भक्तिस्युं शक्र बलिईशान हीवे आपणने धर्मनो कुण दें शिक्षा दान ॥५॥
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