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६० ॥ ॐ नमो सिद्धं ॥ ॥ वीरजिनवरनिर्वाण ॥
॥ राग आसाउरी ॥ सच्छांतिकांतिसमतानिशानं वृशष्टकर्मक्षपकंनितांत, निर्मोहमानं परमंप्रशांत बंदेजिनेशंचरमेमहांतं ॥१॥ यस्यांबिकाश्रीत्रिशलाभिधामा सिद्धार्थराजाजनकः प्रसिद्धः, विश्वोपकृतदुस्सहदूसमेपि तंवीरनाथप्रणतोऽस्मिभक्त्या ॥२॥
हाल ॥ बार वरस तप साधन कानो, तीस वरस श्रुत वरस्यो, अनुपम ज्ञान प्रकाशी जिनवर, मुनिवर तुंज रस फरस्यो
हो प्रमुजी ॥१॥ तुं साहिब सुखदाई तुं जगनाथ कहाई,
हो साहिब जिनवर तुं सुखदाई तुं तो अलख अनंत अमोहि निज पर आतम सोही, विगतबिछोही अकोही अलोही, हुं गूंज दर्शन मोही
हो जिनजी तुं ॥ २ ॥ भाव अहिंसा ते वस्ताई निज गुण संपत्ति पाई, त्रिण लोक बई गतमाई भविक शिवपददाई
हो प्रभुजी ॥३॥ तुं ॥ धन महसेनमें तिरथवाई चौविहि संघ सचाई, गणधरकुं समता सिखलाई, चंदना समता पाई
हो प्रभुजी ॥ ४ ॥ तुं ।।
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