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अष्टप्रकारी पूजा.
॥ अथ मंगल दीपक ॥ ॥ दीवो रे दीवो मंगलिक दीवो, भुवनप्रकाशक जिन चिरंजीवो ॥ दी० ॥ १ ॥ चंद सूरज प्रभु तुम मुख केरां, लुछण करतां दे नित फेरा ।। दी० ॥ २ ।। जिन तुज आगल सुरनी अमरी, मंगलदीप करी दिये भमरी ॥ दी० ॥३॥ जिम जिम धूपघटी प्रगटावे, तिम तिम भवना दुरित दझावे ॥ दी० ॥ ४॥ नीर अक्षत कुसुमांजलि चंदन, धूप दीप फल नैवेद्य वंदन ॥ दी० ॥५॥ इणि परें अष्ट प्रकारी कीजे, पूजा स्नात्र महोत्सव भणीजे ॥ दी० ॥६॥ इ० मं० दी० ॥
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