________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अथ श्रीदेवचंद्रजीकृत विंशति विहर
मानजिन स्तवनानि॥ ॥ तत्र प्रथम श्रीसीमंधरजिन स्तवनं ॥
॥ सिद्धचक्रपद बंदी ॥ ए देशी ॥ ॥ श्री सीमंधर जिनवर स्वामी, विनतडी अवधारो ॥ शुद्धधर्म प्रगट्यो जे तुमचो, प्रगटो तेह अम्हारो रे स्वामी, विनवीयें मनरंगे ॥ १ ॥ जे परिणामिक धर्म तुमारो, तेहवो अमचो धर्म ॥ श्रद्धाभासन रमण वियोगें, बलग्यो विभाव अधर्म रे, स्वामी ॥ वि० ॥ २ ॥ वस्तु स्वभाव स्वजाति तेहनो, मूल अभाव न थाय ॥ परविभाव अनुगत परिणतियी, कर्मे ते अवराय रे, स्वामी ॥ वि० ॥३॥ जे विभाव ते पण नैमित्तिक, संतति भाव अनादि ॥ परनिमित्त ते विषय संगादिक, ते संयोगें सादि रे, स्वामी ॥ वि० ॥४॥ अबुद्ध निमित्तें ए संसरता, अत्ता कत्ता परनो ॥ शुफ निमित्त रमे जब चिद्घन, कर्ता भोक्ता घरनो रे, स्वामी ॥ वि० ॥५॥ जेहना धर्म अनंता प्रगट्या, जे निजपरिणति वरीयो । परमातम जिनदेव अमोही, ज्ञानादिक गुणदरीयो रे, स्वामी ॥ वि० ॥ ६ ॥ अवलंबन उपदेशक रीतें, श्री सीमंधर देव ।। भजी ये शुद्ध निमित्त अनोपम, तजी यें भवभय देव रे, स्वामी ॥ वि० ॥७॥ शुद्धदेव अवलंबन करतां, परहरीये परभाव ॥ आत्मधर्म रमण अनुभवता, प्रगटे आतम भाव रे, स्वामी ॥ वि० ॥८॥ आतमगुण निर्मल नीपजना, ध्यान समाधि
२४५
For Private And Personal Use Only