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दे० चो० बा०
॥ अथ सामान्यकालरूप पंचविंशतितम स्तवनं ॥
॥ काल बोलयानी देशीमां ॥
चोवीशे जिनगुण गाईयें, धाईये तत्त्वस्वरूप जी ॥ परमानंद पद पाईयें, अक्षय ज्ञान अनूपो जी ॥ च० ॥ १ ॥
अर्थ:-श्री ऋषभदेवथी मांडीने महावीर पर्यंत अवस पिणी काले शासनना नायक गुणरत्नाकर, महामाहण, महागोप, महावैद्य, एहवा चोवीश तीर्थकर थया, तेहने गाइयें केतां गुणग्राम करायें, अने पोताना तत्त्वस्वरूपने व्यायीयें तेहने ध्यावे, तत्त्वनी एकाग्रता पाभीयें, तेहयी परमानंद अविनाशीपद पामीजें. वली अक्षय, अविनाशी, एहवं क्षायिक ज्ञान ते अनूप अद्भुत पामीजे ||१|| इति प्रथम गाथार्थः । ।
चौहदसँ बावन भला, गणधर गुणभंडारो जी ॥ समतामयी साधु साधुणी,
सावय श्राविका सारो जी ॥ चां० ॥ २ ॥
अर्थ:- चोवीशे जिनराजना गणधर ( १४५२ ) भला गण गणि पिढकना धणी, गुणना भंडार तथा समतामयी साधु
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