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दे० चौ. बा.
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सर्व प्रकारे स्वाधीन, निर्दोषी तेथी परमेश्वर वली केहवा छ? जे वस्तुगतें कहेतां मूलवस्तुधमै अलिप्त छे, एटले सर्व जीवद्रव्य शुद्धसंग्रहनये अलिप्त छे, पण कोइ अन्यद्रव्य तथा रागादि अशुभ परिणतिथी लेपाय नहीं, अने अभिनंदन प्रभु तो सर्वनये विशुफ थया छे, टंकोत्कर्णन्यायें प्राग्भावधर्मी थया छे, ते सर्व रीते परथी अलिप्त छे, एटले जे लेपाय, ते मले, पण जे लेपाय नहीं, ते केम मले ? हवे छ द्रव्य छे, तेनां नाम कहे छे. १ असंख्यात प्रदेशी, लोकप्रमाण, अरूपी अक्रिय, अचल, अचेतन,चेतन तथा जीव अने पुद्गल ए बे द्रव्य, गतिपरिणामी छे तेने गतिनो सहायी थाय, ते धर्मास्तिकाय द्रव्य जाणवू. २ असंख्यातप्रदेशी, लोकप्रमाण, अरूपी, अचेतन, अक्रिय, स्थितिपरिणामी, एटले जे जीवपुद्गलने स्थिर रहेवानुं सहाय आपे, ते अधर्मास्तिकाय, ३ अनंतप्रदेशी, लोकालोकप्रमाण, अरूपी, अचेतन, अक्रिय, अने सर्व द्रव्यना पोते अवगाहक परिणामी, तेने अवगाहनानुं हेतु, ते आकास्तिकाय द्रव्य, ४ पुद्गलपरमाणु, अनंतारूपी, अचेतन, सक्रिय, पूर्णगलनधर्ममयी, १ वर्ण, २ गंध, ३ रस, ४ स्पर्शयुक्त, एक एक परमाणु, एहवा अनंत परमाणु ते सर्वलोकमांहे जाणवा, पण लोकथी बाहेर नहीं, ते पुद्गलास्तिकायद्रव्य, ५ चेतनालक्षण, १ ज्ञान, २ दर्शन, ३ चारित्र, ४ तप, ५ वीर्य, ६ उपयोग, लक्षण तथा अरूपी, स्वभावतुं कर्ता, असंख्यात प्रदेशी, एहवू एक जीवद्रव्य, तेहवा अनंता जीव, ने जीवास्तिकायद्रव्य कहिये, ए पांच द्व्यने प्रदेशनो संबंध छे, माटे अस्तिकाय कहिये. ६ तथा छठं अप्रदेशी, अरूपी, वर्तनालक्षण, निश्चयनयथी पंचास्तिकायनी वर्त्तनारूप अने व्यवहारें उपचारथी ज्योतिश्च
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