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दे० चो० बा
आधारभूत एहवा श्रीजिन कहेतां वीतरागना चरणने जे उल्लास कहेतां हर्ष धरीने वंदे, कहेता बांदे, तेनो जन्म कृतार्थ॥७॥ निज सत्ता निज भावथों रे, गुण अनंतनुं ठाण ॥ देवचंद्र जिनराजजीरे, शुद्ध सिद्ध सुखखाणजि०८ ___ अर्यः--ते प्रमु निज कहेता पोतानी सत्ता अनंतगुण पर्याय रूप ते निज भावथी कहेतां पोताने भाव स्वभावेयी थया छे. एहवा जे गुणज्ञानादिक अनंत तेनुं ठाण कहेतां ठेकाणुं छे. सर्व देवमां चंद्रमा समान जिनराज, ते कहेवा छे? शुद्ध सिद्ध कहेतां निष्पन्न गुणनी खाण छे ॥ ८ ॥ इति संभवजिनस्तवनं ॥ ३ ॥ ॥अथ चतुर्थ श्रीअभिनंदनजिनस्तवनम् ॥
॥ ब्रह्मचर्यपद पूजीयें ॥ प देशी ।। क्युं जाणुं क्युं बनी आवशे, अभिनंदन रस रीति हो मित्त ॥ पुद्गल अनुभव त्यागथो, करवी जसु पश्तोत हो मित्त ॥ क्यु०॥१॥
अर्थ:--हवे श्रीअभिनंदन प्रभुनी स्तुति कहे छे. कोइ भव्य जीवने श्रीवीतरागदेवथी एकत्वपणे मलवानुं मन थयु, पण प्रभुजीने मलवानी शक्ति पोतामां अग देखतो विचारे छे, जे एहवा परमोत्कृट देवतावनी केम मिलाय ? तेनो विर
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