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श्रीदेवचन्द्रजीकृत छटक प्रश्नात्तर.
सांभल्यो छे, मनुष्यगति तिर्यंचगति मार्गणामां उत्तरवैक्रिय करे ते काले वैक्रिय करतां वैक्रियद्विक देवद्विक न बांधे पण उत्तरवैकिय काल गवेख्योज नयी उपाधिकृत ते कारणिक छे. ते गवेखता नथी, इम जणाव्यो छे, अने जे मनुष्यतिर्यंच उत्तरवैक्रियपणे वर्त्तमान ते वैक्रिययी वैक्रियद्विक न बांधे, तेवारे औदारिकद्विकनरद्विक बांधे, अने औदारिक प्रत्ययि प्रथमसंघयण पण समकितीपणा माटे बांधे, ते जीव वैक्रियशरीर मूकतां वली औदारिकशरी थातां औदारिकमिश्रकाय योगी थाई. ते कोइककाल सीम ए पांच प्रकृति बांधे. ते ए आशय जणाववाने ए पांच गवेखी छे, वैक्रिय मूकतां औदारिक मिश्र थाई ए सिद्धांतनो मत छे. संभावाने सूक्ष्म ऋजुसूत्रनयनो आशय छे, ए अक्षर किहां दीठा नथी, परंपरामध्ये सांभल्यो छे तथा जयसोम पन्यासे कर्मग्रंथ विषमपदपर्यायना पत्र १०-१२ कर्या छे ते मध्ये लिख्यो छे तिहां वृहद्वंधस्वामित्वटीकानी साख लिखी छे. ए पण एकवार जीर्णश्रुतवर पासे धारयो छे पण अक्षर दीठा नयीजी. ए प्रश्नपडुत्तर तथा कडुआमती शा लावा ए प्रश्न पूछयोजे, आत्माना मध्ये आठप्रदेश किम रह्या छे ? अथवा सावरण छे, निरावरण छे ? तेहनो उत्तर. आठ प्रदेश छे ते च्यार उपर छे, ने च्यार हेटल छे. ते निर्मल छे. निरावरण छे. तेहनी साख लिखीइं छे. मध्यात्मप्रदेशाशकस्य न कर्मबंधः यदुक्तं श्रीआचारांगटीकायां लोकविजयाध्ययने प्रथमोदेशकस्यादौ " तदनेन पंचदशविधेनापियोगेनात्माऽष्टौ प्रदेशान्विहायतप्तभाजनोदकवदुद्वर्त्तमानैः सर्वैरेवात्म प्रदेशैरात्मप्रदेशावष्टवाकाशदेशस्थं कार्मणशरीरयोग्यं कर्मदलिकं यध्नाति तत्प्रयोगकर्मेत्युच्यते" एहवा पाठथी आठ प्रदेशनिरा
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