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श्री देवचंद्रजीकृत छूटके प्रश्नोत्तर.
ऋतुस्वभावादि बोल्या ए सर्व व्यवहारनय तथा आदित्यादिगति परिछित्तिरूप बाह्यकाल लेइने बोल्या छे, ते परमार्थे नथी ते श्रीभगवतीसूत्रे प्रश्न छे. जे केटलीक वनस्पति उष्णकाले फले ते स्वामि कीम छे ? तेवारे श्रीवीतराग कहे छे ए जीवने उष्ण फरसी पुद्गलनो आहार घणो लेवराय छे. तेमाटे उनाले फले छे. तिहां जीवनो उदीतकर्मकारण छे, पिण एकांत कालनी मुख्यता नथी. वली काल अपरिणामी अकर्ताद्रव्य छे ते स्याने परमध्ये परिणमे स्याने परकार्य करे, तेमाटे वृक्षादिकनो जीव पुद्गलद्रव्य छे तेमाटे ते फलजीव पुद्गल मध्ये एहनी वर्तना मान्यांज सर्व समो पडे, पिण भिन्नद्रव्य मान्यां कोई समो पडे नहीं, वली कोइक पूछस्ये जे धर्मास्तिकायपण अपरिणामी अक्रिय अकर्ताद्रव्य छे ते किम चलणसहायी थाय छे ? तेहनो उत्तर जे गति परिणामी जीवद्रव्य तथा पुद्गल द्रव्यने सहायी थाय छे पिण ते धर्मास्तिकायरूप छे. अने काल ते अस्तिकाय नयी. तथा भावप्रकरणे "कालोऽतिकलनं काल एव द्विधा वर्त्तना लक्षणः १ समयावलिकादिलक्षणश्च अतस्तववर्त्ततेभवंति भावास्तेनतेन रूपेण तान् प्रतियोजकत्वं वर्तना सा लक्षणंलिंगंऽस्येतिवर्तना लक्षणः अयं समस्तद्रव्यक्षेत्रभावव्यापीति.” १ एहनो अर्थ जेवर्ते थाये ते रूपे प्रतियोगी सहकारीपणे ते वर्तना कहीये, ते वर्तमानज छे लक्षण जेहनो ते वर्तनालक्षण काल कहीये. द्रव्य धर्मादिक क्षेत्र सर्वना प्रदेशभाव सर्व द्रव्यना गुणपर्याय ते मध्ये व्यापकपणे छे. एटले पंचास्तिकायनी वर्तना तेहज निश्चयकाल कयो, ए मध्ये जूदा कालद्रव्यनी ना थई. बीजो समयावलिकालक्षण ते व्यवहारकाल जाणज्यो. ते समय वर्तमान एक छतो भिन्नद्रव्य मानीये
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