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श्री देवचन्द्रजीकृत छूटक प्रश्नोत्तर.
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sri संख्यानो नियम कह्यो छे पण भव्य अभव्य नियम नयी ते माटे पंचांगीनी रीते इंम जणाय छे पछी तो श्री केवलीनां जाण्यामे हुवे ते प्रमाण छेजी तथा समवसरण मन्ये. फूलनी वृष्टि थाय छे ते सचित्तफूलनी छे श्री यशोविजय उपाध्यायजी प्रतिमाशतकमध्ये पण ए घणो चच्र्थ्यो छेजी इंम सहवो जे कारणे प्रशस्तमार्ग जे करे ते मध्ये आ स्रव नथी ए सूत्रनी परिपाटी छेजी कोइक प्रगटाक्षरमार्ग तो उत्तराध्ययन सूत्रे मृगी पुत्राव्ययने को ले.
अपसत्थेहिदारेहि, सबओपिहीयासवो । अज पज्झाणजोगेहि, पसत्थदमसासणो ॥ १॥
इत्यादिक अनेक आचारादिसूत्रे घणा पाठ छे ते जोइ लेजो तथा पं. ज्ञानकुसलनो प्रश्न जे सूत्रे द्रव्य छ कह्या छे. तथा विशेषावश्यक मध्ये पांचज द्रव्य कह्या छे. तेहनो स्वरूप लिखीये छे. जे वस्तुगते विचारतां हालनो वस्तुपणो पिंडरूप द्रव्यपणो नथी. ते माटे अस्तिकायपणो नथी. अस्तिकायपणो बहुप्रदेश मिले बहुपरमाणु मिले थाये ते कालने नथी. कोइक कालना रेणु असंख्याता माने छे. लोकाकाशप्रदेशप्रमाण माने छे पिण ए वात प्रमाण नथी. जे रेणुआमान्यां अस्तिकायपणो थाय कदापि रेणुआने भिन्नद्रव्य मानीये तो कालद्रव्य असंख्याता धाये. अने सूत्रे कालद्रव्य अनंतो मान्यो छे ते माटे रेणुआनो मानवो तो संभवे नहीं तथा सूत्र परपाटीये श्रीजीवामिगमसूत्रे पण इंम दिसे छे. " जे किमयं भंते कालोत्तिवृच्चइ गोयमा जीवाचेव अजीवाचेव" एटले जीव
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