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श्री देवचंद्रजीकृत छूटक प्रश्नोत्तर.
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प्रगट छे तेपण तुम्हे जोज्यो तथा विचरतां तीर्थकरने फूले पूजे हमे शंका आणे तेहनी बुद्धिनो दोष छे, उववाइमध्ये अप्पेगरंयापूयणवत्तीया ए वचन छे ते ए पदनी टीका पूजनंपुष्पमालादिना ए अर्थ कह्यो छे, अभयदेवसूरिकृत टीकामध्ये पाठ दीसे छे.
तीर्थंकरसचित्तने अडके नहीं इंम कहे तेपण समझता नथी. केवलीना पगथी तीतरनां बचां कुकडानां बचां पारेवानां चां मरे तोपण संपरायकी किरिया न लागे ए पाठ भगवतीसूत्रमध्ये प्रगट छे ते जोजो तो भक्तो फूल चढावे तेमध्ये स्यो दोष छे ? !
तथा बुचे पाणी पीतां अरधो पाणी कलसीयामे रहे ए मध्ये समूर्छिम उपजवानो तंत दीसतो नथी. पन्नवणा टीकाने आसयैइम जणाय छे पिण ए चालकरवो नहीजी.
तथा राते तो अपकायजीवनी तमसकायथी वृष्टि थाय छे अगासे थाए तो निरधार दीसे छे अने ते वृष्टि में बीजा जीव तो जाण्या नयी अने किहांइक ग्रंथे अन्यजाति मध्ये उपजता पण ह्या छे. योगशास्त्र टीकामे ए चरचा लिखी छे, ते माटे उपजता पिण जणाय छे, शीतस्पर्शने योगे रसीया उपजवानी हा दीसेतो छे पिण घणेकाल गये योनिपलटे उपजे परभाते रविकिरण उवडे ते हणाय छे ए जाणवो पिण आगमरीते तमसकायिया ठरे छे.
तथा आहारकशरीर करे प्रदेशत्रीछे भागे जे दिशे केवलीने निर्धार ते दिशे नीकले छे, दसमाद्वारनो कांइ प्रयोजन नयी कहां पाठ पण नथी अने मुख्यपणे हृदय प्रमुख आगला
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