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बिचार रत्नसार
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प्रमाण अंतर छेटेथी आवेला पुद्गलोनो अष्ट प्रकारे स्पर्श छे तेना विकारो ९६ छे, २ रसेन्द्रियनी आकृति सरपलो तथा कमळना पत्र सरीखी छे, नव योजन अंतरे रहेला पुद्गलोनो स्वाद वायुथी खेंचाइ आवे थके थाय, तेना छ रसरूप छ वि षयना ७२ विकारो छे, ३ घ्राणेन्द्रियनी आकृति तलना फूल सरखी छे, तेनो विषय क्षेत्रफळ नव योजननो तेना विषय २ अने विकार १२ छे, ४ चक्षुइंद्रिय, तेनी आकृति मसुरनी दाळ समान, एक लाख योजन विषय क्षेत्रफळ, तेना विषय पांच अने तेना विकार ६०, काननो बार योजन आत्मांगुल प्रमाणे चार गाउनो योजन जाणवो. तथा मूर्यनो बिंब तो आत्मांगुल प्रमाणे घणा लाख योजन थाय. ते माटे चक्षुनो एटलो विषय नथी तो सूर्यनो बिंब किं, देखाय छे. तत्रोत्तर सूर्यनो विमान देवका एक योजनना एकसठिया अडतालीस भागनो छे. तेना आपणा गाउ १३०० ने आशरे मोटो विमान छे. ते संपूर्ण आंखे देखातो नथी. पण तेना विमानना तलीयाना तेजनो आभासमान झलक कांति दिसे छे. पण संपूर्ण विमान आंखे न देखाय ते माटे आत्मांगुल प्रमाणेनो लाख योजन विषय कहेवो. श्रोत्रेन्द्रियनी आकृति अगथीआ वृक्षना फूल समान, तेनो १२ योजन विषय क्षेत्र, तेना विषय ३ अने विकार १२ एम एकंदर पांच इंद्रिय विघय २३ अने विकार २५२ ते विकारो रहित मात्र
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