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विचार रत्नसार.
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२१३ प्र०-स्थावर पर्याप्तानी निश्राए अपर्याप्त जीव केटला होय?
उ०-पृथ्वी, पाणी, अग्नि, वायु, वनस्पति प्रत्येक एटले स्थानके एकेका पर्याप्तानी निश्राए असंख्याता अपप्ति होइ पण सूक्ष्म निगोदीया पर्याप्तानी निश्राये अनंता अपर्याप्ता न होइ, ते अनंता अपर्याप्तानां शरीर जूदा तेहनो पण आयु बसेंछपन आवलिनु होय पण अपर्याप्तो मरे इम नहोय. सर्वे क्षुल्लक भविया छे ते माटे तथा पर्याप्ता- आयु एटलं पण तेटला मांहे पर्याप्ति पुरीने मरे एहq धाय छे. इति तत्त्वम्.
२१४ प्र०-व्यवहारराशियोजीव निगोदमां जाय तो त्यां उत्कृष्ट
केटलो काळ रहे ?
उ.-ते क्षेत्रथकी अढीपुद्गलपरावर्तनकालप्रमाण पछी
सूक्ष्मबादरनिगोदमां आवी वळी जाय तो उत्कृष्ट अढीपुद्गलपरावर्तन, वळी त्यांथी नीकळी एकेंद्रियादि चक्रमां भ्रमण करी पाछो जायतो वळी उत्कृष्ट एटलो काळ रहे एम आव जा करतां सर्व काळ तिर्यंचगति आश्रिने गणीए तो उत्कृष्ट असंख्याता पुद्गलपरावर्तन काळ रहे, ते केटला ? स्तोके एक आवलीना असंख्यातमे भागे जेटला समय थाय तेटला असंख्याता प्रमाण पुद्गल परावर्तन जाणवा. एम पन्नवणा मध्ये तथा कायस्थितिस्तोत्रनी टीका मध्ये
कह्यु छे.
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