________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
८४२
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विचार रत्नस.र.
पीसण स्थान, ए पांच छकाय हिंसानां स्थान, त्यां उत्तमजीवो निःशुकपणे न वर्ततां अतियतनाए वर्ते छे, तेथी आकरो कर्मबंध पडतो नथी.
१६३ प्र० - आत्मस्वरूप सूचक केटलांएक अन्वय अने व्यतिरेकभावे विशेषणो कहो.
उ०- असंख्यातप्रदेशी, अनंतज्ञानमयी, अनंतदर्शनमयी, अनंतचारित्रमयी, अनंतदानमयी, अनंतवीर्यमयि अनंतलाभमयी, अनंतभोगमयी, अनंतउपभोगमयी, अरूपी, अखंड, अगुरुलघुमयी, अक्षय, अजर, अमर, अशरीरी, अत्येन्द्री, अणाहारी, अलेशी, अनुपाधिक, अरागी, अद्वेषि, अक्रोधी, अमानी, अमायी, अलोमी मिथ्यात्वरहित, अविरतिरहित, कषायरहित, योगरहित, अयोगी, सिद्धस्वरूपी, संसाररहित, स्वात्मसत्तावंत, परसत्ता रहित, परभाव अकर्ता, स्वभाव कर्ता, परभाव अभोक्ता, स्वभाव भोक्ता, क्षायिक वेत्ता, स्वक्षेत्रावगाहि, परक्षेत्र अनावगाहि, लोकप्रमाण अवगाहनवंत, धर्मास्तिकायथी भिन्न, अधर्मास्तिकायथी भिन्न, आकाशास्तिकायथी भिन्न, पुद्गलयी भिन्न, परकालथी भिन्न, स्वद्रव्यवंत, स्वक्षेत्रवंत, स्वकालवंत, स्वभाववंत, अवस्थानपणे स्वगुणी अभिन्न, कार्यभेदे भिन्न, अवस्थितसत्तावंत, परिणमनसत्तावंत, द्रव्यास्तिकपणे नित्य, पर्यायास्तिकपणे नित्यानित्य, द्रव्ययणे एक, गुण पर्यायपणे अनेक, अनंतद्रव्यास्तिकधर्मवंत, अनंत पर्यायास्तिकधर्मवंत इत्यादि स्वसंपदामयी, चेतन
For Private And Personal Use Only