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विचार रत्नसार.
अने पुद्गल द्रव्य तो शाश्वत छ, एटले जेम सोनानो कंदोरो भांगीने सोनाना बाजुबंध कराव्या त्यां कंदोरानो .व्यय, बाजुबंधनो उत्पाद अने सोनु ते ध्रुव. हवे धर्मास्तिकायना द्रव्य गुण पर्याय विचारे छे. धर्मास्तिकाय शुफद्रव्य लोकप्रमाण, असंख्यात प्रदेशी, अखंड, एक आकृतिरूप अरूपि शुद्धव्यंजन पर्यायरूप धर्मास्तिकायदव्य जाणवू, तथा पोतानी गुणश्रेणि मध्ये षद्गुणहानिवृद्धिरूप परिणमन करे त्यां शुद्ध अर्थपर्याय धर्मास्तिकायना कहिये, गुण ते जीव पुद्गलने गतिसहायकरूप, तथा उत्पादव्ययध्रुवपणे पदगुणहानिवृद्धिरूप पर्याय जाणवाः-जेम चलणगतिनो उत्पाद, स्थितिनो व्यय अने द्रव्यसत्ता ध्रुव शाश्वत जाणवी, एवीज रीते अधर्मादि बीजा त्रण द्रव्योर्नु पण किंचित स्वरूप लखीए छीए:---अधर्मनो गुण जे पुद्गलने स्थितिसहायक, असंख्यातप्रदेशी, लोकप्रमाण, अखंड, पद्गुणहानिवृद्धिरूप परिणाम, ते शुफ पयीय, त्यां अखंडआकृतिरूप शुद्ध व्यंजनपर्याय जाणवो अने ज्यां षट्गुणहानिवृद्धि करे त्यां शुद्ध अर्थपर्याय जाणवो, जेम स्थितिनो उत्पाद, गतिनो व्यय, अने द्रव्यसत्ता ध्रुव जाणवी, काळ द्रव्यनो गुण वर्तना लक्षण, पंचद्रव्यनो वर्तना पर्याय सर्व द्रव्यनो पर्याय, असंख्यात लोकप्रमाण शुद्ध पर्याय कहीए. वर्तमान समयनो व्यय, अनागत समयनो
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