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विचार रत्नसार.
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पुनरपि द्रव्यथी क्षेत्रथी कालयी भावयी स्युं ? ते कहे छे १ द्रव्ययी अप्रदेशी, बीजुं क्षेत्रथी अप्रदेशी २, चीजें कालथी अप्रदेशी ३, चोथे भावथी अप्रदेशी ४, हवे क्षेत्रथी ते नियमा अप्रदेशी ते द्रव्ययी स्यात् समदेशी अप्रदेशी ४. हवे कालथी स्यात् सप्रदेशी अप्रदेशी. कालयी पण भजना, क्षेत्रथी स्यात् सप्रदेशी स्यात् अप्रदेशी, हवे भावथी स्यात् सप्रदेशी स्यात् अप्रदेशी एणी रीते लेजो ए भाव, हवे जे द्रव्यथी सप्रदेशी ते क्षेत्रथी समदेशी छे, जे कालथी सप्रदेशी छे ते भावथी सप्रदेशी छे ४. हवे सप्रदेशी ते क्षेत्रथी स्यात् सप्रदेशी, अप्रदेशी ते द्रव्यथी समदेशी नियमा ते द्रव्यथी स्यात् सप्रदेशी स्यात् अमदेशी ते द्रव्यथी समदेशी होइने अप्रदेशी पण छे. हवे अप्रदेशी कालथी स्यात् समदेशी, समदेशी स्यात् अप्रदेशी, कालथी स्यात् समदेशी स्यात् अप्रदेशी, ते क्षेत्रथी स्यात् समदेशी स्यात् अप्रदेशी, हवे भावथी स्यात् समदेशी स्यात् अप्रदेशी भावथकी भजना भावथकी स्यात् सप्रदेशी स्यात् अप्रदेशी ने कालथी पण स्यात् सप्रदेशी स्यात् अप्रदेशी इति भाव.
१४२ प्र० - षट् द्रव्यना गुणपर्यायनुं शुद्धाशुद्ध स्वरूप यथार्थ विस्तारे समजावो.
उ०- षद्रव्यमध्ये प्रथम जीवद्रव्य लइए, ए जीव बे प्रकारे छे, एक शुद्ध अने बीजो अशुद्ध द्रव्यकर्म, भावकर्म अने नोकर्मादि सर्व कर्मकलंके रहित शुद्ध निष्पन्न; स्वरूपी सिद्धालये अनादि तथा सादि अनंत भांगे, लोकाग्रे बिराजता सिद्धपरमात्माओना
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