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विचार रत्नसार.
ते जिननी कीधी इम 'कारणे कार्योपचारात् । इम जिननी स्थापनाथी आज प्रत्यक्ष प्रमाणे श्री वीर मल्या कहीए 'अत्र संदेहोनास्ति' इति भाव." तथा छापेली प्रतिमां नीचे प्रमाणे पाठ छे. ___ अविरोध, अस्खलित, अविसंवादि, निःस्वार्थ, एकांत, दयामय, संपूर्ण सत्य, मधुर, प्रिय, गंभीर, अमर्म प्रकाशक, सर्वज्ञ अने सर्वदर्शिपणाना लक्षणोए पूर्ण, तथा मुद्राकारे शांत सुधारसमय रागद्वेषादि चिन्ह रहित इत्यादि अनेकशास्त्रवचन गोचर वीरपरमात्मा आगमपणे सिद्ध करीए. २ अनुमान प्रमाणे जेम धूम्र दिठे अग्निनो निश्चय थाय तेम पूर्वापर महात्माओना तिहासिक संबंध तेना विधविध उत्कृष्ट सदाचार प्रवर्तक पुरूषोना प्रमाणोए ज्यारे ऐंसी ने, वातो अनुभवथी सत्य सिद्ध थाय तो तेनी शेष दस वातो पण सत्यज मानी लेवाय छे, अने होय छे पण तेमज एवीज रीते श्री वीर परमात्माना अनेक वचनो अत्यारे बीजा अन्य दर्शनिना वचनो करतां सत्य, अविरोधी, अने प्रमाणभूत थाय छे, तो कोइक सूक्ष्म, अगम, अगोचर वात छद्मस्थ मंदबुद्धिना ग्राह्यमां न आवी शके, तोपण बीजी घणी वात मळे छे तेने अनुमाने ते पण सत्यज होवी जोइए; एम वीरप्रभुना वचनो पण युक्ति तथा न्याय सिफ़ सत्य होवाथी वीरपरमात्मा अनुमानपणे पण सिफ़ थया; ३ उपमा प्रमाणे पुरिससिहाणुं एटले तप तेजे तथा
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