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८.४
विचार रत्नसार. रत्न ते राजकुळे उपजे, गजरत्न अने अश्वरत्न ए
बे वैताढ्य पर्वत उपर उपजे. १०३ प्र०-नव निधान ते कया अने ते क्यां प्रगटे ? उ०-गंगानदीने तटे नवनिधाननी नव पेटी प्रगटे छे,
ते प्रत्येक पेटी १२ योजन लांबी, नव योजन पहोळी, अर्ध योजन उंची, ते योजन आत्मांगुल प्रमाण जाणवा, अने नवनिधि मंजुसने आकारे छे, बैडर्यमणिरत्नमय कमाड छे, तेना तथा तेमांनी वस्तुनां नाम कहे छे:-१ नैसपिक, तेमां नगर निवेस ग्रामादि उत्पादक विधि छ; २ पांडक, तेमां धान्य बीजादिकनी सर्व संपत्ति छे; ३ पिंगळ, तेमां नर नारी हय गयनां विविध आभरणो छ ४ महापद्म, तेमां चउदे जातिनां रत्नो छे; ५ मल्लि, तेमां विविध प्रकारनी सुगंधि पुष्पादि विगेरे वस्तुओ छे; ६ काळ, तेमां त्रिकाळ ज्ञाननां पुस्तको छे ७ महाकाळ, तेमां सोनु, रुघु, झवेरात, लोह विगेरे सर्व द्रव्य असूट छे; ८ माणक नामे तेमां राजनीति, युझनीति अने सर्व हथीयार युद्धनी नीति छे ९ सुखनिधि, तेमां चतुर्विध नाटकादि संगीत शास्त्रादिना ग्रंथो छे; ते प्रत्येक निधाने एक हजार व्यंतर देवो अधिष्ठायक छे, तेनुं आयु एक पल्यो
पमनुं छे. १०४ प्र०-प्रभु ज्यां पारणुं करे त्यां धनवृष्टि देवताओ केडली
करेछे ?
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