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विचार रत्नसार.
गाथा-सत्तरिसयमुक्कोसं, जहन्नयं वीस विहरमाण जिणा; .
समयखित्ते दस वा, जम्मपइ वीसदसगं वा ॥ ए प्रवचन
सारोफार ग्रन्थनी गाथा जाणवी. तथा दोहराथी गाथानो भाव जाणवो.
विहरमान जिन चैत्यवंदन. विवरो ए गाथातणो, कवि लेज्यो संभाल; सित्तरिसो जिनवर हुवे, कहे के अइ काल. चढते काळ उत्सर्पिणी, वारे अष्टम जिन; एकसो सित्तर जिनवर हुवे, एणीपरे सुणो सज्जन. २ पांच विदेहे मेळवी; साटसो विजय उप्पन; भरतखत दस मीळे, सित्तेरसो होय जिन. पडते काळे अवसर्पिणी, सोलम जिन लगे हुंत; भरतवरते जिन हुवे, साठसो विदेह लहंत. ४ केवळी कइ बाळ परण्या, वयणे एहज सोया आठमा जिनयी सोलम लगे, विरह विदेह न होय. ५ सोलमा जिन साथे सहु, मुक्ते जाय जिन भाण; विरहसमे सहु क्षेत्रमां, अक्षर एह पिछाण. ६ सत्तरमा जिन होय भरह, पंच औरवत मली दशा समयक्षेत्र दश कह्या, लेहवा एह अवश्य. सत्तर अढारह जिन वचे, जन्मे वीश विदेहः वीस एकवीसमा वचे, संयम केवळ देह. भरतैरवत दश मळे, मध्यम सांप्रत त्रीशः चोवीशमा जिन शिव गये, विदेह विचरे वीश. ९ अनागत चोवीशी सातमा, आठमा वच्चे निर्वाण; विरह पडे सह क्षेत्रमां, अष्टमे न होय जिनभाण. १०
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