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आगमसार.
मल केवल ज्ञान पामे पछे तेरमें गुणठाणे ध्यानंतरीकापणे छे. तेरमाना अंते अने चउदमे गुणठाणे ए बे पाया ध्यावे.
३ सूक्ष्मक्रिया अप्रतिपाति पायो कहे छे. ते सूक्ष्म मन, वचन कायाना योग रुंधे, शैलेशी करण करी अयोगी थाय ते जे अप्रतिपाति निर्मलवीर्य अचलतारूप परिणाम से सूक्ष्मक्रियाअप्रतिपाति ध्यान जाणवू. इहां सत्ताये ८५ प्रकृति रही हती ते मध्ये ७२ खपावे.
४ उच्छिन्नक्रियानुवृत्ति पायो कहे छे. जे योग निरुंध कीधा पछे तेर प्रकृति खपावे, अकर्मा थाय, सर्व क्रियाथी रहित थाय ते, समुच्छिन्न क्रिया निवृत्ति शुक्लध्यान कहि ये. ए ध्यान-ध्यावतां शेष, दल, खरणरूप क्रिया उच्छेदे, अवगाहना देह मानमाथी चीजो भाग घटाडे, शरीर मूकी इहांथी सातराज ऊपर लोकने अंते जाय, सिद्ध थाय. इहां शिष्य पूछे जे चौदमे गुणठाणे तो अक्रिय छे, तो सात राज उंचो गयो ए क्रिया केम करे छे ? तेने उत्तर जे सिद्ध तो अक्रिय छे, परंतु पूर्व प्रेरणायें तुंबीने दृष्टान्ते जीवमां चालवानो गुण छे. धर्मास्तिकायमध्ये प्रेरणा गुण छे, तेथी कर्मरहित जीव मोक्षे जतां लोकने अंते जइ रहे. इहां कोई पूछे जे आगळ उंचो अलोक छे तिहां किम जातो नथी ? तेने उत्तर जे आगल धर्मास्तिकाय नथी माटे न जाय. वली कोइ पुछे जे तो अधोगतियें अथवा तिरच्छी गतियें केम नथी जातो ? तेने उत्तर जे कर्मना भारथी रहित थयो, हलुवो थयो, माटे नीचो तथा डाबो जिमणो न जाय, कारण के प्रेरक कोइ नथी तथा कंपे नही केमके अक्रिय छ माटे तथा कोइ पूछे जे सिद्धने कर्म केम लागता नथी ? तेने कहे छे से कर्म लो जीवने अज्ञानयी तथा योगथी लागे छे,
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