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आगमसार.
३ विपाकविचय धर्मध्यान कहे छे. जे एहवो जीव छे तोपण कर्मवशे दुःखी छे ते कर्मनो विपाक चिंतवे जे जीवनो ज्ञानगुण ते ज्ञानावरणीय कर्मे दाब्यो छे अने दर्शनावरणीय कमैं दर्शनगुण दाब्यो छे, एम आठ कर्मे जीवना आठ गुण दाव्या छे एटले आ संसारमा भमतां थकां जीवने जे सुखदुःख छे ते सर्व कर्मनां कीयां छे. माटे सुख उपने राचवू नही अने दुःख उपने दिलगीर थर्बु नही. कर्म स्वरूपनी प्रकृति, स्थिति, रस, अने प्रदेशनो बंध, उदय, उदीरणा, तथा सत्ता, चिंतवनानुं एकाग्रता परिणाम ते विपाकविचय धर्मध्यान.
४ संस्थानविचयधर्मध्यान कहे छे. ते चउद राजमान लोकनुं स्वरूप विचारे जे ए लोक ते चउदराज ऊंचो छे ते मध्ये सातराज अधोलोक छे. विचमा अढारसो योजन मनुष्य क्षेत्र विछो लोक छे ते ऊपर कांइक ऊणो सातराज ऊर्वलोक छे तेमां सर्व वैमानिक देवता वसे छे अने ऊपरें सिद्ध शिला सिद्ध क्षेत्र छे.ए रीते लोकनुं प्रमाण छे. ए लोक संस्थान वैशाख छे. अनंतो काल आपणा जीवें संसारमा भमतां सर्व लोकने जन्म मरण करी फरस्यो छे, एवं जे लोक स्वरूप तथा लोकने विषे पंचास्तिकायर्नु अवस्थान तथा परिणमन द्रव्य मध्ये गुणपर्यायर्नु अवस्थान तेनो जे एकाग्रताये तन्मयचितवन परिणाम एहवू जे ध्यान ते संस्थान विचय धर्मध्यान कहिये. ए धर्मध्यानना चार पाया कया. ए धर्मध्यान चोथा गुणठाणाथी मांडीने सातमा गुणठाणा सुधी छे.
हवे शुक्लध्यान कहे छे. शुक्ल केहतां निर्मल, शुद्ध, पर
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