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कर्मग्रन्थस्य टवार्थः
___ अर्थ-सर्व प्रकृतिनी जिट्ठ-उत्कृष्टी स्थिति ते अशुभ जाणवी, जे साई-ते अति संक्लेश परिणामे एटले जिननामनो बंध चोथा गुणठाणाथी मांडी आठमा गुणठाणा लगे छे, पिण चोथे स्थिति उत्कृष्टी बांधे तेमें शुद्ध परिणाम छे ते माटे जवन्य बांधे. ए सर्व प्रकृतिनी ईअरा-जघन्य स्थितिने विशुद्ध परिणामे बांधे, एक तीन प्रकृति नर-मनुष्यायु, देवायु, तिर्यचायु, ए तीन प्रकृति मूकीने, एटले ए तीन प्रकृतिनी जघन्य स्थिति संक्लेश परिणामे बांधे, उत्कृष्टी स्थिति विशुद्ध परिणामे बांधे. ॥५२॥ सुहुमनिगोआइखणप्प-जोगवायर य विगलअमणमणा अपजलहु पढमदुगुरू, पजहस्सिअरो असंखगुणो।५३॥ ___अर्थ हवे २८ बोलना योगबलनो अल्पबहुत्व कहे छे. सूक्ष्मनिगोदादि प्रथम क्षणे प्रथम समये उपनो अपर्याप्त पणाथीज आव्यो तेहनो सर्वथी योगबल अल्प जाणवो. १ तेहथी बादर एकेन्द्री अपर्याप्तो प्रथम समय उपनो अपर्याप्तो अपर्याप्तपणाथीज आव्यो, तेहनो सर्वथी योगबल अल्प जाणवो. १. तेहथी बादर एकेन्द्री अपर्याप्तो प्रथम समय उत्पन्न जघन्ययोगीनो योगबल असंख्यातगुणो, २, तेहथी बेन्द्री अपर्शप्ता जघन्ययोगीनो योगबल असंख्यातगुणो, ३ तेथी तेन्द्री० ४ तेथी चोरेन्द्री० ५ तेहथी अनण-असंज्ञि अपप्तिानो जघन्य योगबल असंख्यातगुणो, ६ तेहथी मणासंज्ञि अपर्याप्तानो जघन्य योगबल असंख्यातगुणो ७, तेहथी पढम-पेहेला बे बोल गुरु-उत्कृष्टबंधक एटले सूक्ष्म अपर्याप्तानो उत्कृष्ट योगबल असंख्यातगुणो, ८ तेहथी बादर अपर्याप्तानो
घन्ययोगीना बादर एकेन्दी पाथी योगबली
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