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कर्मग्रन्थस्य टबार्थः
यमा छे. ने मिश्र गुणस्थाने २८, २७ ने २४ ए त्रण सत्तामां मिथ्यात्व अवश्य होय माटे, तथा अयत कहेतां चोथा गुणठाणाथी ११ मा गुणठाणा लगे आठ गुणठाणे भजना जाणवी. तिहां उपशम समकीतीने तथा क्षयोपशमकीतीने मिथ्यात्वनी सत्ता छे. अने क्षायिक समकीतीने सप्तक क्षय गयो छे तेहने ए मिथ्यात्वनी सत्ता नथी. सास्वादन गुणठाणे समकीत मोहनी नियमा सत्तायें होय. हवे मिथ्यात्वथी मांडी उपशान्तमोह पर्यंत दस गुणठाणे समकीत मोहनी सत्तानी भजना जाणवी. तिहां अनादि मिथ्यात्व तथा समकीत मोहनी उद्वेली हुवे ते जीवने मिथ्यात्व गुणठाणे वर्तते समकीत मोहनीनी सत्ता नथी, अने जे त्रिपुंजीकरण करीने मिथ्यात्वे आव्या छे तेहने छे. सम्यकत्वमोह उवेलीने जे मिश्र गुणठाणे आव्या छे, त्यां तेहने समकीत मोहनीनी सत्ता नथी. उवेलया विना जे मिश्र गुणठाणे आव्या छे, तेहने सत्ता छे. अने चोथा गुणठाणाथी इग्यारमा पर्यंत, तथा उपशमीने समकीत मोहनीनी सत्ता छे. क्षायिकसमकीतीने त्रणे मोहनीनी सत्ता नथी ते माटे भजना जाणवी. ॥ १० ॥ सासणमीसेसु धुवं, मीसं मिच्छाइ नवसु भयणाए। आइदुगे अण नियमा, भइया मीसाइ नवगंमि॥११॥ - अर्थ-सास्वादन गुणठाणे, मिश्र गुणठाणे ध्रुव नीश्चयथी मिश्रमोहनीयनी सत्ता छे, जे कारणे कृतत्रिपुंजी जीव ए गुणठाणे आवे, अने मिथ्यात्व १, अविरति समकीतथी उपलांक उपशान्तमोह सुधी एवं ९ नव गुणठाणे भजना जाणवी. हवे न होवे. तिहां अनादि मिथ्यात्वी छवीस सत्तावत छे,
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